क्या आपके दामाद आपके लिए मदगार होंगे ?
आजकल शादियों में कुंडली मिलान में नयी प्रथा चल
पडी है, लोग सिर्फ यह नहीं देखते की होने वाली बहू की पटरी पति के साथ बैठेगी या
नहीं बल्कि बाकी परिवार के साथ कैसा सम्बन्ध रहेगा यह भी देखा जाता है. साथ ही
आजकल तलाक की खबरें भी जेब कटने जैसी आम हो चली हैं. या तो वर्तमान कुंडली मिलान
में कोई बड़ी गड़बड़ है या ज्योतिषियों में अब उतनी अंतर्दृष्टि नहीं रह गयी है ये
फिर इश्वर ने समस्त पापियों को इसी शताब्दी में धरती पर भेज दिया है जिससे वे अपने
पूर्व जन्मों के कर्मों का फल भोग सकें. दुखी विवाहिक जीवन से बड़ी सजा आज के समय
में कुछ नहीं होती है.
फिर भी लगभग हर हिन्दू घर में और अन्य धर्मों
में भी , आजकल बिना कुंडली मिलाये शादी नहीं करी जाती. इसका एक कारण बढ़ते हुई तलाक
के मामले भी हैं जो सभी धर्मों में बढ़ रहे हैं. कोई भी यह नहीं देखना चाहता की
उसकी लड़की का होने वाला पति कन्या के परिवार के लिए कैसा रहेगा क्योंकि यह पुरुष
प्रधान समाज है. आज के समय में पति के अपने ससुराल वालों से पत्नी के अपने ससुराल
वालों से सम्बन्ध भी तलाक का एक कारण बनते जा रहे हैं. आमतौर पर पुरुष अपने ससुराल
पक्ष को अधिक तवज्जो नहीं देते और स्त्रीयां भी येही कर रही हैं. हमारी पर्दा या
घूंघट की प्रथा लुप्त ही हो गयी है और बड़ो की इच्छा और आज्ञा मजाक का विषय बन गयी
है. पारिवारिक मूल्यों की इस अवनति का कारण हमारी संस्कृति का पश्चिमीकरण और
आधुनिकीकरण है जिसका खामियाजा कई परिवार अदालत में भुगत रहे हैं. बिना सर पैर के
पारिवारिक धारावाहिक इनकी बड़ी वजह है. टेलीविज़न और मोबाइल फोंस ने हमारी संस्कृति
का इतना बेडा गर्क करा है की सोचा भी नहीं जा सकता.
हमारे गाँव और छोटे शहरों में आज भी हमारी
संस्कृति जीवित है, वहां जीवन खुशहाल है और लोगों को एक दुसरे से सामाजिक और
मानसिक सरोकार भी है. येही कारण है की गाँव के अपेक्षा शहरों में तलाक के मसले
अत्यधिक दिखाई देते हैं. जीवन प्यार सहचार और मिलकर जीने का नाम है न की अहंकार और
दिखावे के साथ. ऐसा नहीं है की स्त्री वर्ग एकदम से कामकाजी हो गया है बल्कि आजादी
से पूर्व भी स्त्री नौकरी करा करती थी मगर तब वह अपनी और दोनों परिवारों की
मर्यादा को साथ लेकर चलती थी. आज दृष्टिकोण मिएँ परिवर्तन हो गया है और परिणाम हम
रोज़ ही अखबारों में पढ़ते हैं.
इस विषय पर गुरूजी श्री कृष्णामूर्ति जी ने अपना
मत दिया है किन्तु उन्होंने सास ससुर की कुंडली और दामाद की कुंडली की तुलना करी
है. आज के समय में कोई भी व्यक्ति सारे परिवार की कुंडली लेके ज्योतिषी के पास
नहीं जाता. अतः कुछ तो ऐसा स्त्री की पत्रिका में होना चहिये जिससे की यह निर्धारण
हो सके की उसके पति का उसके माता पिता से कैसा सम्बन्ध रहेगा.
सप्तम भाव पति का भाव होता है और नवं पिता का.
चतुर्थ भाव माता का है. नवं भाव भाग्य स्थान भी है और पंचम नवं का नवं होने से
पूर्व पुण्य का भाव है. अंततः भाग्य और पूर्वपुन्य ही व्यक्ति के वर्तमान जीवन का
करक होते हैं. भाग्य को नहीं बदला जा सकता. इन्हीं भावों के बीच के सम्बन्ध में ही
कहीं इस प्रश्न का हल छुपा है.
ग्रहों की दशा के अनुसार व्यक्ति के जीवन में
उतार चढ़ाव आते जाते हैं और उसका व्यवहार भी इन्हीं के वश में होता है. येही कारण
है की अच्छे मित्र भी कटु शत्रु बन जाते हैं और शत्रुओं से भी मित्रता हो जाती है.
परिवार में भी ऐसा ही होता है, लोगों के अंतरसंबंध बदलते रहते हैं.
पंचम भाव नवं का नवं है और सप्तम नावम का
ग्यारहवां, लग्न नवं का पंचम स्थान है. कुछ कुंडलियों का अध्ययन करके देखते हैं की
ये क्या दर्शा रही हैं, इनमें से दो कुण्डलियाँ दो सगी बहनों की हैं जिनके पति का
व्यवहार ठीक विपरीत है उनके परिवार के प्रति :
1) 13-11-1974. 6:15. अशोकनगर म .प्र .

2) 7 -२ - 1973. 9:15. अटर्रा. उ .प्र .

3) 25-11-1954. 4:30. हैदराबाद .आन्ध्र प्रदेश

4) 4 -१- 1975. 9:05. इटारसी म.प्र .

1) प्रथम पत्रिका के पति का शुरू से उसके घर वालों से वैमनस्य रहा और दोनों अब
अलग भी हो चुके हैं .तलाक होना बाकी है .सप्तम और नवं का उप्नाक्ष्त्र स्वामी शनि
है जो की बुध के उप्न्नक्ष्त्र में है .बुध द्व्दाश भाव में है जो की पंचम का
अष्टम भाव है और नवं का चतुर्थ भाव. यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है की इस स्त्री के
पति के उसके ससुराल पक्ष से सम्बन्ध ठीक नहीं रहेंगे. दोनों की महादशा भी शनि की
चल रही है. पंचम का उप्नाक्स्त्र स्वामी शुक्र है जो की अत्यधिक पीढित
है.
2) दूसरी पत्रिका में पंचम का उपनक्ष्त्र स्वामी शनि है जो की केतु के उपनक्ष्त्र
में है और केतु चतुर्थ भाव में है. तृतीय भाव पंचम का ग्यारहवां भाव होता है. नवं
का उपनक्ष्त्र स्वामी गुरु है जो की शनि के उप्नाक्स्त्र में है और तृतीय भाव में
है .इस स्त्री का पति एकदम पालतू दामाद जैसा है और ससुराल पक्ष की हर बात को
शिरोधार्य करता है.शनि साथ में तृतीय का उपनक्ष्त्र स्वामी भी है.
3) तीसरी पत्रिका में पंचम का उप्नाक्ष्त्र स्वामी बुध है जो शनि के उपनक्ष्त्र
मिएँ है और लग्न में विराजमान है. लग्न नवं का पंचम भाव है .इस जातक के अपने
ससुराल पक्ष से बहुत मित्रवत सम्बन्ध हैं जो की शादी के शुरू से चले आ रहे हैं. नवं का उप्नाक्ष्त्र स्वामी शनि है जो
की गुरु के उप्नाक्ष्त्र में नवं भाव में ही विराजमान है . जातक के पति की दशा भी
शनि की चल रही है. शनि नवं भाव का बहुत अच्छा कार्येष गृह है.
4) चतुर्थ कुंडली में पंचम का उपनक्ष्त्र स्वामी शनि है अपने ही उपनक्ष्त्र में
पंचम भाव में है.इस स्त्री का पति अत्यधिक आज्ञाकारी तथा मित्रवत है अपने ससुराल
पक्ष से .इसके पति की अभी गुरु की महादशा चल रही है जो प्रथम भाव में है जो की नवं का
पंचम भाव होता है .
अतः हमने देखा की पंचम भाव
का कार्य इस सम्बन्ध में बहुत अधिक होता है. पाठक गण अपने ऊपर भी इसका प्रयोग करके
देख सकते और आप अवश्य ही २,५,९,११, भावों को कार्य करते हुई पायेंगे यदि आपके पति
का आपके घरवालों से मीठा समबन्ध है और बुरा होने पर ६,८,१२ भावों को आप कार्यरत
देखेंगे.
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